-: Jai Baba Dhundeshwer Mahadev Mandir :-
(जय बाबा धुंन्धेशवर महादेव)
जिसका संबंध
भी शिव की
एक दिव्य शक्ति
से है ।
यह हिमाचल प्रदेश
के काँगड़ा (Kangra) जिले
में नेकेड
खड्ड के
तट पर कसेटी
(Kaseti) नाम का एक
छोटा सा गांव
स्थित है ।
नेकेड खड्ड (Naked khadd) कसेटी
(Kaseti) से 2 किलोमीटर की
दूरी पर
स्थित है |
कहते हैं जीवन
में किसी भी
प्रकार की बाधा
हो, महादेव के
दर्शन मात्र से
वो सारी बाधाएं
दूर हो जाती
हैं. देवों के
देव-महादेव अपने
भक्तों के दुखों
के साथ काल
को भी हर
लेते हैं और
मोक्ष का वरदान
देते हैं, इस
मंदिर की मान्यता है कि जो
भी भक्त सच्चे
मन से आता
है, उसकी हर
मनोकामना पूरी
होती है ।
चाहे ग्रहों की
बाधा हो या
फिर कुछ और, मृत्युंजय महादेव के मंदिर
में दर्शन कर
सवा-लाख मृत्युंजय महामंत्र के
जाप से सारे
कष्टों का निवारण
हो जाता है
और यदि कोई
भक्त लगातार 16 सोमवार
यहां हाजिरी लगाए
और त्रिलोचन के
इस रूप को
माला फूल के
साथ दूध और
जल चढ़ाए तो
उसके जीवन के
कष्टों का निवारण
क्षण भर में
हो जाता है.
पौराणिक कथा
(इस दिव्य धाम के पीछे एक कथा भी है)
बहुत समय पहले की बात है कसेटी गांव प्रेम
सिंह नाम का एक किसान था उसके पास बहुत खेत थे वो अपने खेतो में बहुत ही मेहनत से काम
करता था | उस के दो बेटे थे । बड़े बेटे का नाम वीर सिंह और छोटे बेटे का नाम दूलो राम
सिंह है | प्रेम सिंह पास बहुत सारे जानवर भी थे, प्रेम सिंह को अपने जानवरों से बहुत
प्यार था इसलिए उसने अपने घर में बहुत सारी गाय और भैंस पाल रखी थीं। वो अपने खेत में
और दूध बेचकर वह अपना जीवन व्यतीत करता था । प्रेम सिंह के घर से नेकेड खड्ड
(Naked khadd) 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है | हर रोज वो अपनी गाय और भैंस चराने
के लिए नेकेड खड्ड ले जाया करते थे
कहा जाता है कि नेकेड खड्ड के किनारे एक
बड़ी चट्टान के ऊपर एक पत्थर था और प्रेम सिंह की गाय हर रोज सुबह और शाम जाकर इस पत्थर
पर दूध चढाती थी और जब गाय दूध चढाती थी तो
उसके चारों ओर धुंध - सी छा जाती थी, एक दिन गाय को कुछ लोगो ने ऎसा करते देख लिया
और वे लोग इस पत्थर के पास गए, वहाँ जाकर देखा की वो पत्थर नहीं है वो तो एक शिवलिंग है | और लोगों ने
आपस मे एक - दूसरे से बातचीत करके ये निर्णय लिया
क्यों ना इस शिवलिंग को अपने गाँव ले लिया जाये, सभी लोगो ने माथा टेका और वो लोगो उस शिवलिंग को अपने गांव
(मानगढ़) में ले की तैयारी करने लगे | उन लोगो ने एक पालकी तैयार की ओर शिवलिंग को ले
जाने लगे, जैसे-जैसे उन लोगों ने 2 किलोमीटर की दूरी तय कर ली फिर जैसे-2 अपना कदम
बढ़ाने लगे तो शिवलिंग का भार बढ़ने लगा, भार
ना संभालने के कारण लोगो ने शिवलिंग को भूमि पर रख दिया और विश्राम करने लगे | विश्राम
करने के बाद वो लोग शिवलिंग को उठाने का काफी प्रयास करते रहे, लेकिन असफल रहे । तभी
उनका एक रूप यहां प्रकट हुआ, इस बाद में इसी स्थान पर मंदिर का निर्माण करवाया गया
। तब से लेकर आज तक होली के 5 दिन पहले प्रेम सिंह अपने घर सभी गाँव के लोगो को निमंत्रण
दे कर भोजन करवाते थे । प्रेम सिंह की मृत्यु होने के बाद अब ये रीत उनके दोनों बेटे
निभाते आ रहे है………….
Jai Baba Dhundeshwer Mahadev
Mandir
पर्यटन
मंदिर का मुख्य
द्वार काफी सुंदर
एव भव्य है
। जय बाबा
धुंन्धेशवर महादेव
के पास ही
में 9 कि॰मी॰ की
दूरी पर ज्वालाजी माता का मंदिर
है । यहां
हर साल होली,
महाशिवरात्रि
और सावन आदि
में भोले के
भक्तों की भारी
भीड उमड पडती
है । 16.8 कि॰मी॰
कि दूरी पर
बगलामुखी का
मंदिर है
प्रमुख त्योहार
यहां हर साल
होली, महाशिवरात्रि, होली ,जन्माष्टमी ,नवरात्रि और
सावन आदि में
भोले के भक्तों
की भारी भीड
उमड पडती है
। जय बाबा
धुंन्धेशवर महादेव
में महाशिवरात्रि के
समय में विशाल
मेले का आयोजन
किया जाता है।
साल के दोनों
नवरात्रि यहां
पर बडे़ धूमधाम
से मनाये जाते
है। महाशिवरात्रि में
यहां पर आने
वाले श्रद्धालुओं की
संख्या दोगुनी हो
जाती है ।
इन दिनों में
यहां पर विशेष
पूजा अर्चना की
जाती है। शिव
चालीसा का पाठ
रखे जाते हैं
और वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ हवन
इत्यादि की
जाती है। महाशिवरात्रि और होली में
पूरे भारत वर्ष
से श्रद्धालु यहां
पर आकर देव
की कृपा प्राप्त करते है ।
कुछ लोग देव
के लिए लाल
रंग के ध्वज
भी लाते है
।
मुख्य आकर्षण
मंदिर में आरती
के समय अद्भूत
नजारा होता है।
मंदिर में 2 बार
आरती होती है।
एक मंदिर के
कपाट खुलते ही
सूर्योदय के
साथ में की
जाती है। दूसरी
संध्या को की
जाती है। आरती
के साथ-साथ
महादेव को भोग
भी लगाया जाता
है। प्रसाद में
इन्हें फल व
दूध के साथ
दही का भोग
लगता है. उसे
फूलो और सुगंधित सामग्रियों से
सजाया जाता है।
जिसमें कुछ संख्या
में आये श्रद्धालु भाग लेते है।
आरतियों का समय
1.
सुबह कि आरती
7.00
2. भोग (आरती के
बाद)
3. संध्या आरती 7.00 बजे
(सूर्यास्त समय
पर निर्भर करता
है)
प्रसाद में
इन्हें फल व
दूध के साथ
दही का भोग
लगता है (आरती
के बाद)
कैसे जाएं
वायु मार्ग:-
जय बाबा धुंन्धेशवर महादेव मंदिर जाने
के लिए नजदीकी
हवाई अड्डा गगल
में है जो
कि धुंन्धेशवर महादेव
मंदिर से 43.6 kms कि॰मी॰
की दूरी पर
स्थित है। यहाँ
से मंदिर तक
जाने के लिए
कार व बस
सुविधा उपलब्ध है।
रेल मार्ग:-
रेल मार्ग से
जाने वाले यात्रि
पठानकोट से
चलने वाली स्पेशल
ट्रेन की सहायता
से मरांदा होते
हुए पालमपुर आ
सकते है। पालमपुर से मंदिर तक
जाने के लिए
बस व कार
सुविधा उपलब्ध है।
सड़क मार्ग:-
पठानकोट, दिल्ली, शिमला आदि
प्रमुख शहरो से
धुंन्धेशवर महादेव
मंदिर तक जाने
के लिए बस
व कार सुविधा
उपलब्ध है। यात्री
अपने निजी वाहनो
व हिमाचल प्रदेश
टूरिज्म विभाग
की बस के
द्वारा भी वहाँ
तक पहुंच सकते
है। दिल्ली से
खास पैसा (ज्वालाजी), के लिए दिल्ली
परिवहन निगम की
सीधी बस सुविधा
भी उपलब्ध है।
प्रमुख शहरो से जय बाबा धुंन्धेशवर महादेव मंदिर की दूरी
ठहरना
जय बाबा धुंन्धेशवर महादेव में रहने
के लिए काफी
संख्या में धर्मशालाए व होटल है
| जिनमें रहने
व खाने का
उचित प्रबंध है
। जो कि
उचित मूल्यो पर
उपलब्ध है ।
जय बाबा धुंन्धेशवर महादेव मंदिर के
पास का नजदीकी
शहर पालमपुर व
कांगडा है | जहां
पर काफी सारे
डिलक्स होटल है।
यात्री यहां पर
भी ठहर सकते
है | यहाँ
से मंदिर तक
जाने के लिए
बस व कार
सुविधा है ।