Monday, February 22, 2021

Happy Maha Shivratri 2021


Happy Maha Shivratri 2021 पूर्व काल में चित्रभानु नामक एक शिकारी था। जानवरों की हत्या करके वह अपने परिवार को पालता था। वह एक साहूकार का कर्जदार था, लेकिन उसका ऋण समय पर न चुका सका।   क्रोधित साहूकार ने शिकारी को में बंदी बना लिया। संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी। शिकारी ध्यानमग्न होकर शिव-संबंधी धार्मिक बातें सुनता रहा। चतुर्दशी को उसने शिवरात्रि व्रत की कथा भी सुनी।
शाम होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने के विषय में बात की। शिकारी अगले दिन सारा ऋण लौटा देने का वचन देकर बंधन से छूट गया। अपनी दिनचर्या की भांति वह जंगल में शिकार के लिए निकला। लेकिन दिनभर बंदी गृह में रहने के कारण भूख-प्यास से व्याकुल था। शिकार खोजता हुआ वह बहुत दूर निकल गया।  जब अंधकार हो गया तो उसने विचार किया कि रात जंगल में ही बितानी पड़ेगी। वह वन एक तालाब के किनारे एक बेल के पेड़ पर चढ़ कर रात बीतने का इंतजार करने लगा।
 
बिल्व वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जो बिल्वपत्रों से ढंका हुआ था। शिकारी को उसका पता न चला। पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनियां तोड़ीं, वे संयोग से शिवलिंग पर गिरती चली गई। इस प्रकार दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बिल्वपत्र भी चढ़ गए। एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक गर्भिणी हिरणी तालाब पर पानी पीने पहुंची।

शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा खींची, हिरणी बोली, 'मैं गर्भिणी हूँ। शीघ्र ही प्रसव करूंगी। तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, जो ठीक नहीं है। मैं बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाऊंगी, तब मार लेना।'


शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और हिरणी जंगली झाड़ियों में लुप्त हो गई। प्रत्यंचा चढ़ाने तथा ढीली करने के वक्त कुछ बिल्व पत्र अनायास ही टूट कर शिवलिंग पर गिर गए। इस प्रकार उससे अनजाने में ही प्रथम प्रहर का पूजन भी सम्पन्न हो गया।

कुछ ही देर बाद एक और हिरणी उधर से निकली। शिकारी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। समीप आने पर उसने धनुष पर बाण चढ़ाया। तब उसे देख हिरणी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया, 'हे शिकारी! मैं थोड़ी देर पहले ऋतु से निवृत्त हुई हूं। कामातुर विरहिणी हूं। अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूं। मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी।'

शिकारी ने उसे भी जाने दिया। दो बार शिकार को खोकर उसका माथा ठनका। वह चिंता में पड़ गया। रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था। इस बार भी धनुष से लग कर कुछ बेलपत्र शिवलिंग पर जा गिरे तथा दूसरे प्रहर की पूजन भी सम्पन्न हो गई।

तभी एक अन्य हिरणी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली। शिकारी के लिए यह स्वर्णिम अवसर था। उसने धनुष पर तीर चढ़ाने में देर नहीं लगाई। वह तीर छोड़ने ही वाला था कि हिरणी बोली, 'हे शिकारी!' मैं इन बच्चों को इनके पिता के हवाले करके लौट आऊंगी। इस समय मुझे मत मारो।


शिकारी हंसा और बोला, सामने आए शिकार को छोड़ दूं, मैं ऐसा मूर्ख नहीं। इससे पहले मैं दो बार अपना शिकार खो चुका हूं। मेरे बच्चे भूख-प्यास से व्यग्र हो रहे होंगे। उत्तर में हिरणी ने फिर कहा, जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है, ठीक वैसे ही मुझे भी। हे शिकारी! मेरा विश्वास करों, मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत लौटने की प्रतिज्ञा करती हूँ।
हिरणी का दीन स्वर सुनकर शिकारी को उस पर दया आ गई। उसने उस मृगी को भी जाने दिया। शिकार के अभाव में तथा भूख-प्यास से व्याकुल शिकारी अनजाने में ही बेल-वृक्ष पर बैठा बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था। पौ फटने को हुई तो एक हृष्ट-पुष्ट मृग उसी रास्ते पर आया। शिकारी ने सोच लिया कि इसका शिकार वह अवश्य करेगा।

शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर मृग विनीत स्वर में बोला, हे शिकारी! यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मृगियों तथा छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है, तो मुझे भी मारने में विलंब न करो, ताकि मुझे उनके वियोग में एक क्षण भी दुख न सहना पड़े। मैं उन हिरणियों का पति हूं। यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण का जीवन देने की कृपा करो। मैं उनसे मिलकर तुम्हारे समक्ष उपस्थित हो जाऊंगा।


मृग की बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटनाचक्र घूम गया, उसने सारी कथा मृग को सुना दी। तब मृग ने कहा, 'मेरी तीनों पत्नियां जिस प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई हैं, मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएंगी। अतः जैसे तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर छोड़ा है, वैसे ही मुझे भी जाने दो। मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित होता हूँ।'

शिकारी ने उसे भी जाने दिया। इस प्रकार प्रात: हो आई। उपवास, रात्रि-जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ने से अनजाने में ही पर शिवरात्रि की पूजा पूर्ण हो गई। पर अनजाने में ही की हुई पूजन का परिणाम उसे तत्काल मिला। शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया। उसमें भगवद्शक्ति का वास हो गया।

थोड़ी ही देर बाद वह मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके।, किंतु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवं सामूहिक प्रेमभावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई। उसने मृग परिवार को जीवनदान दे दिया।

अनजाने में शिवरात्रि के व्रत का पालन करने पर भी शिकारी को मोक्ष की प्राप्ति हुई। जब मृत्यु काल में यमदूत उसके जीव को ले जाने आए तो शिवगणों ने उन्हें वापस भेज दिया तथा शिकारी को शिवलोक ले गए। शिव जी की कृपा से ही अपने इस जन्म में राजा चित्रभानु अपने पिछले जन्म को याद रख पाए तथा महाशिवरात्रि के महत्व को जान कर उसका अगले जन्म में भी पालन कर पाए।
 




जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा ।

जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ जय शिव...॥

एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ जय शिव...॥

दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ जय शिव...॥

अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी ।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥ ॐ जय शिव...॥

श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ जय शिव...॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥ ॐ जय शिव...॥

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ जय शिव...॥

काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ जय शिव...॥

त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ जय शिव...॥

शिवजी की आरती: Shivji ki Aarti, Om Jai Shiv Omkar ..

Friday, February 19, 2021

महाशिवरात्रि पर कविता

शिवरात्रि हिन्दू का पवित्र त्योहार है। इस दिन भगवान शिव की पूजा,अर्चना की जाती हैं, उनके लिए व्रत भी रखा जाता है ओर मान्यता है की इस दिन मांगी हुई इच्छा अवश्य पूर्ण होती है। इस दिन लोग एक दूसरे को बधाई देकर भी त्योहार हो अच्छे से मनाते है यही सब ध्यान में रखते हुए हम आपके लिए लेकर आए हैं, Mahadev Kavita in hindi, Shiv Arti जिनको आप अपने friends, Colleagues, या किसी अन्य को भेजकर Mahashivratri ki Shubhkamnaye दे सकते हो।

इसके अलावा आपको नीचे दी गई पंक्तियों में शिव पर कविता, शनि देव की कथा, जय बाबा धुंन्धेशवर महादेव की कथा, पार्वती माता की परीक्षा, मेरा गांव, आदि मिलेंगे।

हे शिव जब सब कुछ ही तेरा है, फिर ये सारा संसार तेरा मेरा क्यों करता है ? हर इंसान, हर धड़कन, जीव-जंतु, ये सारा ब्रह्मांड आदि सब कुछ ही तेरा है, हर कोने - कोने में, कण - कण तू ही तू बसा है, सुख भी तेरा, दुख भी तेरा, रात और सुबह भी सब तेरी है, जीवन मिले या काला अँधेरा सब आपके ही इशारों पे है…..
फिर क्यों ये मन सुख में भरमाए और दुःख में रोते, डरता है

हे भोले बाबा हे मेरे शिव जब सब कुछ ही तेरा हैं, तेरी ही रचाई ये दुनिया है, गोरा - काला, रंग-रूप, काटें-पुष्प, कमल और कीचड़, सागर-लहरे, छाया और धूप आदि सब कुछ ही तेरा है, फिर क्यों लोग एक दूसरे से प्रेम करने की बजाए, घृणा, नफरत, तिरस्कार, लालच, मोह- माया आदि से घिरा है, हे शिव जब सब ही तेरा है

जय हो कालो के काल महाकाल ... इस पोस्ट में आप जैसे भोले बाबा के भक्तों के लिए एक बेहतरीन पोस्ट लेकर आई हूँ, इस पोस्ट में आपकी भक्ति लिए एक से एक हिंदी एक कविता लिखी है, अगर आप सब को ये कविता पसन्द आई तो सच्चे दिल से जय भोले बाबा कमेंट में जरुर लिखे………  

जय भोले नाथ

Thursday, February 18, 2021

शनि देव की कथा(Karmaphal Daata Shani)

शनि देव की कथा Shani Dev Story in Hindi

भगवान सूर्य ने देवी संध्या के साथ विवाह किया और तीन बच्चों का जन्म हुआ। वैश्स्व, मनु, यम (मृत्यु के भगवान) और यमुना। हालांकि संध्या सूर्य के लिए एक पवित्र पत्नी थी, लेकिन वह सूर्य की चमकदार प्रतिभा और गर्मी को सहन नहीं कर सकी। इसलिए, वह सूर्य की प्रतिभा का सामना करने के लिए आवश्यक शक्ति हासिल करने के लिए तपस्या करने की इच्छा भी रखतीं थीं या अपनी तपस्या के परिणामस्वरूप हासिल की गई अपनी प्रतिभा को भी आगे बढ़ाना चाहती थीं।

संध्या ने एक औरत को बनाया और उसका नाम छाया रखा और कहा- कि वह सूर्य की पत्नी के रूप में अपनी भूमिका का प्रतिनिधित्व करे और तीन बच्चों की देखभाल भी करे। हालांकि, वह सूर्य भगवान के लिए अपनी योजनाओं को किसी के सामने प्रकट नहीं करना चाहती थी इसलिये, वह तपस्या करने के लिए जंगलों में चली गयी।

चूंकि छाया बहुत साधारण रूप से मिलती-झूलती थी, सूर्य भगवान उसपे संदेह नहीं कर सके। छाया के माध्यम से सूर्य भगवान के तीन और शिशु हुए थे, जो थे मनु, शनि और तापती। इसलिए, शनि को सूर्य के पुत्र और यम का भाई कहा जाता है।

जब शनी छाया के गर्भ में थे,  उसने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए चमकदार सूर्य के नीचे एक गंभीर तपस्या की। चूंकि वह पूरी तरह से भगवान शिव की प्रार्थना और पूजा में डूब गई थी,  दिव्य शक्ति गर्भ के भीतर बच्चे का पोषण करती थी। इसलिए, शनी देव भगवान शिव को बहुत समर्पित थे। इसके अलावा, जब छाया ने इतनी देर तक धधकते सूरज के नीचे तपस्या की थी, तो शनि गर्भ के अंदर काले रंग के हो गए थे। जैसे ही शनि देव जन्म हुआ, सूर्य भगवान ने उनके रंग को देखकर तुच्छ जाना और इस बात पर संदेह किया कि क्या शनि का जन्म उनके पास हुआ था। नाराज हुए शनि देव ने जब अपने पिता पर नाराज़ नजर डाली तो, शनि देव की शक्ति के कारण, सूर्य भी काले रंग में झुलस गये थे।

 

बाद में सूर्य ने अपनी गलती के लिए पश्चाताप किया और भगवान शिव की पूजा की, जिन्होंने उन्हें बताया कि क्यों शनि इतने काले थे। इस बात के पीछे सच्चाई को जानने के बाद, सूर्य भगवान अपने पुत्र शनि देव के साथ खुश थे और वे एक-दूसरे को बेहतर समझने लगे. शनि देव भगवान शिव के एक प्रेरक शिष्य बन गए और सभी ज्ञान उनसे सीख गए।

शिव शनि देव की भक्ति और ईमानदारी से बहुत प्रसन्न थे। इसलिए उन्होंने उन्हें पृथ्वी पर पैदा हुए जीवन पर उन्हें महत्वपूर्ण ग्रह का स्थान दिया। उन्हें लोगों द्वारा किए गए कर्मों के प्रभावों को वितरित करने की जिम्मेदारी दी गई थी।

शनि देव बेहद उदार भगवान हैं, हालांकि कई लोग उन्हें क्रूर रूप में देखते हैं। वह अपने भाई यम (मृत्यु के देवता) की तरह इतने न्यायप्रिय है इसीलिए वह लोगों द्वारा किए गए कार्यों के अनुरूप सही प्रकार के परिणाम प्रदान करते हैं। अच्छे कर्मों के साथ शनि देव की प्रार्थना करने से उनके आशीर्वाद प्राप्त होंगे और पीड़ित लोगों को कम भुगतना पड़ेगा।


Monday, August 12, 2019

क्यों खास है इस बार का सावन




सबसे पहले आप और आपके परिवार को मेरी तरफ से  कि महादेव के पसंदीदा महीने, रक्षाबंधन और साथ में स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं !! जय हिन्द !! वंदेमातरम् !! भारत माता की जय !!हिंदू धर्म के अनुसार, सावन को वर्ष का सबसे पवित्र महीना माना जाता है                                                                                                          

Sawan 2019: 17 जुलाई से 15 अगस्त तक शिवजी का पवित्र सावन का पवित्र माह शुरु हो चुका है। जो कि  15 अगस्त तक है। हिंदू धर्म के लिए जुलाई माह बहुत ही खास है। इस माह कई महत्वपूर्ण व्रत और त्योहार के साथ सावन पड़ रहा है। जिसके साथ ही भगवान शिव की आराधना होना शुरु हो जाएगी। 

माना जाता है कि जो भक्त इस पावन माह में माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा-अर्चना करते हैं। उनके ऊपर भोले बाबा की हमेशा कृपा बनी रहती है। इस बार सावन का पहला सोमवार 22 जुलाई गए थे। वहीं 15 अगस्त को पूर्णिमा के दिन नका समापन होगा।

क्यों खास है इस बार का सावन?

इस बार सावन के महीने की खास बात यह है कि इस  
बार सावन के 4 सोमवार होंगे। सावन का अंतिम दिन 15 अगस्त को है। इस दिन स्वतंत्रतता दिवस के साथ रक्षाबंधन भी है।



सावन का महत्व

हिन्दू धर्म की पौराणिक मान्यता के अनुसार सावन महीने को देवों के देव महादेव भगवान शंकर का महीना माना जाता है। भगवान शिव को सावन का महीना इतना प्रिय क्यों है ?

इस संबंध में पौराणिक कथा है कि जब सनत कुमारों ने महादेव से उन्हें सावन महीना प्रिय होने का कारण पूछा तो महादेव भगवान शिव ने बताया कि जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के घर में योगशक्ति से शरीर त्याग किया था, उससे पहले देवी सती ने महादेव को हर जन्म में पति के रूप में पाने का प्रण किया था। अपने दूसरे जन्म में देवी सती ने पार्वती के नाम से हिमाचल और रानी मैना के घर में पुत्री के रूप में जन्म लिया। पार्वती ने युवावस्था के सावन महीने में निराहार रह कर कठोर व्रत किया और उन्हें प्रसन्न कर विवाह किया, जिसके बाद ही महादेव के लिए यह विशेष हो गया। तभी से भगवान महादेव सावन का महीन अतिप्रिय है।


 ॐ नमः शिवाय

Om Namah Shivaya

सावन में शिवशंकर की पूजा

सावन के महीने में भगवान शंकर की विशेष रूप से पूजा की जाती है। इस दौरान पूजन की शुरूआत महादेव के अभिषेक के साथ की जाती है। अभिषेक में महादेव को जल, दूध, दही, घी, शक्कर, शहद, गंगाजल, गन्ना रस आदि से स्नान कराया जाता है। अभिषेक के बाद बेलपत्र, समीपत्र, दूब, कुशा, कमल, नीलकमल, ऑक मदार, जंवाफूल कनेर, राई फूल आदि से शिवजी को प्रसन्न किया जाता है। इसके साथ की भोग के रूप में धतूरा, भाँग और श्रीफल महादेव को चढ़ाया जाता है। और गायत्री मंत्र का भी  जाप किया जाता है.......

गायत्री मंत्र:-


आपको गायत्री मंत्र का अधिक लाभ चाहिए तो इसके लिए गायत्री मंत्र की साधना विधि विधान और मन, वचन, कर्म की .... कार्य में सफलता नहीं मिलती, आमदनी कम है तथा व्यय अधिक है तो उन्हें गायत्री मंत्र का जप काफी फायदा पहुंचाता है। मंत्र जप एक ऐसा उपाय है, जिससे सभी समस्याएं दूर हो सकती हैं। शास्त्रों में मंत्रों को बहुत शक्तिशाली और चमत्कारी बताया गया है। सबसे ज्यादा प्रभावी मंत्रों में से एक मंत्र है गायत्री मंत्र। इसके जप से बहुत जल्दी शुभ फल प्राप्त हो सकते हैं।

गायत्री मंत्र जप का समय : गायत्री मंत्र जप के लिए तीन समय बताए गए हैं, जप के समय को संध्याकाल भी कहा जाता है।

गायत्री मंत्र के जप का पहला समय है सुबह का। सूर्योदय से थोड़ी देर पहले मंत्र जप शुरू किया जाना चाहिए। जप सूर्योदय के बाद तक करना चाहिए।

मंत्र जप के लिए दूसरा समय है दोपहर का। दोपहर में भी इस मंत्र का जप किया जाता है।

इसके बाद तीसरा समय है शाम को सूर्यास्त से कुछ देर पहले। सूर्यास्त से पहले मंत्र जप शुरू करके सूर्यास्त के कुछ देर बाद तक जप करना चाहिए।

यदि संध्याकाल के अतिरिक्त गायत्री मंत्र का जप करना हो तो मौन रहकर या मानसिक रूप से करना चाहिए। मंत्र जप अधिक तेज आवाज में नहीं करना चाहिए।

गायत्री मंत्र

भूर्भुव: स्व:

तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि।

धियो यो : प्रचोदयात्।।

गायत्री मंत्र का अर्थ : सृष्टिकर्ता प्रकाशमान परामात्मा के तेज का हम ध्यान करते हैं, परमात्मा का वह तेज हमारी बुद्धि को सद्मार्ग की ओर चलने के लिए प्रेरित करें।

गायत्री मंत्र जप की विधि

इस मंत्र के जप करने के लिए रुद्राक्ष की माला का प्रयोग करना श्रेष्ठ होता है। जप से पहले स्नान आदि कर्मों से खुद को पवित्र कर लेना चाहिए। मंत्र जप की संख्या कम से कम 108 होनी चाहिए। घर के मंदिर में या किसी पवित्र स्थान पर गायत्री माता का ध्यान करते हुए मंत्र का जप करना चाहिए।

गायत्री मंत्र जप के फायदे

उत्साह एवं सकारात्मकता बढ़ती है।

त्वचा में चमक आती है।

बुराइयों से मन दूर होता है।

धर्म और सेवा कार्यों में मन लगता है।

पूर्वाभास होने लगता है।

आशीर्वाद देने की शक्ति बढ़ती है।

स्वप्न सिद्धि प्राप्त होती है। क्रोध शांत होता है।


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Happy Maha Shivratri 2021

Happy Maha Shivratri 2021 पूर्व काल में चित्रभानु नामक एक शिकारी था। जानवरों की हत्या करके वह अपने परिवार को पालता था। वह एक साहूकार का क...